Ethics V/s Morality
एथिक्स और मोरैलिटी केवल शब्द ही नहीं है बल्कि एक मार्गदर्शक मूल्य है। यह मूल्य जो हर पल हमारे साथ रहते है और हमे हमेशा सही दिशा में बढने को प्रेरित करते है। हम समाज में कई उदाहरण देखते है जो एथिकल और अनएथिकल व्यवहार को दर्शाता है। तो सवाल यही आता है कि आखिर क्या है एथिक्स और मोरैलिटी।
आज हम एथिक्स और मोरैलिटी के बारे में बात करेंगे। हम देखगें की इन दोनों शब्दो में क्या अंतर और क्या समानतायें है। एथिक्स और मोरैलिटी दोनों ऐसे शब्द है की जिन्हे सामान्य रूप से देखने पर दोनों सामान ही लगते है। दोनों शब्दो को यदि विस्तार से समझा जाए तो दोनों एक दूसरे से बहुत भिन्न है। हम दोनों शब्दो को एक-एक करके समझने का प्रयास करते है
Ethics
अब एथिक्स को विस्तार में समझते है। एथिक्स को हम दो सेन्स में ले सकते है। पहला सेन्स जब हम उसे एक विषय के रूप में लेते है और दूसरा सेन्स उसे नैतिकता के रूप में लेते है। विषय के रूप में में लेने पर हम इसे एक विषय के रूप में पढ़ते है। जिसके अंतर्गत बताया जाता है कि इसमें क्या नैतिक होता है और क्या अनैतिक होता है। कैसे हम अपने जीवन को नैतिक बना सकते है। साथ में एथिक्स को एक साइंस विषय के रूप में देख सकते है जिसे नोर्मेटिव साइंस कहा जा सकता है और जिसमे बताया जाता है की क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए।
एथिक्स में हमारे आचरण को ३ भागो में बांटा गया है जो निम्लिखित है।
मोरल- मोरल में ज्यादातर हम देखते है की जैसे किसी बेसारा और जरुरतमंद व्यक्ति की किसी न किसी रूप में मदद करना ही मोरल या नैतिक की मदत ता में आता है।
इम्मोरल – इम्मोरल में हम ऑब्सेर्वे करते है की यदि कोई असहाय और जरुरतमंद किसी से हेल्प मांगता है और वह हेल्प करने के बजाय उसके साथ गलत तरीके से पेश आता है तो ये व्यवहार इम्मोरल कहा जाता है।
नॉन मोरल – नॉन मोरल व्यवहार में न किसी मदद होती है और न ही किसी का नुकशान होता है। यह व्यवहार शून्य होता है।
Morality
मोरैलिटी या नैतिकता को हम आंतरिक मन की एक वैल्यू मानते है, जो हमें हमेशा, हरपल, हर मोड़ पर और हर स्थिति में बताता है कि हमारे लिए क्या सही है और क्या नहीं और यह मानवीय जिम्मेदारियों का अहसास दिलाता है।
ज़िंदगी में हजारों बार ऐसे क्षण आते हैं जब हमें कोई एक ही निर्णय लेना होता है, पर हमारे पास विकल्प कई होते है,और सभी सही भी होते है। पर न चाहते हुए भी हमें एक का ही चुनाव करना पड़ता है। या तो हम मानवीय जिम्मेदारी को निभाए जो हमें मोरल बनाये रखेगा। या हम व्यावसायिक जिम्मेदारी पर ध्यान दे जो हमें एथिकली सही लगे। इस प्रकार के द्वंद्व से निकले के लिए हमें मानसिक संघर्ष करना होता है और एक डिसिशन पर पहुंचना होता है।
अक्सर हम इसे कुछ इस तरह से कह देते हैं कि जब दिल और दिमाग की जंग साथ साथ चले तो समझना चाहिए की अब हमें एथिक्स और मोरालिटी में से किसी एक का साथ देना होता है। जबकि दोनों ही अपनी अपनी जगह पर सही होते है। ऐसे में निर्णय लेने में मुश्किलें आना स्वाभाविक होता है। वहाँ पर हम हर बार कुछ न कुछ का त्याग करते हैं, क्योंकि हमें कोई एक ही निर्णय लेना होता है और उस पर आगे बढ़ना होता है।
Conflict between ethics and morality
एथिक्स और मोरैलिटी में अंतर्द्विंद यह है की जब एथिक्स और मोरैलिटी का इस्तेमाल इंग्लिश में होता है तो लगता है की दो नो में बड़ा फर्क होगा। पर वहीं शब्द जब हिन्दी में इस्तेमाल किये जाते है तो दोनों सामान अर्थ दिखाते है। एथिक्स और मोरालिटी दोनों का प्रयोग हिन्दी में नैतिकता के लिए ही किया जाता है। अब जब दोनों का प्रयोग नैतिकता के लिए किया जाए तो स्वाभाविक है कि अंतर को पृथक करना काफी मुश्किल होगा।
हिन्दी में भी जब एथिक्स एक विषय के रूप में प्रयोग किया जाता है। वह विषय नीतिशास्त्र कहा जाता है, तब थोड़ी सी पृथकता नजर आने लगती है। फिर भी पूरी तरह से इसके बीच अंतर का पता नहीं चल पाता है। एथिक्स और मोरालिटी वहां पर सामान होते है जहां पर बहारी दुनिया की वो नैतिक मान्यतायें जो हमारी अपनी नैतिक मान्यतायें भी बन चुकी है। वह आपस में दुविधा पैदा नहीं करते है। अब हम एथिक्स और मोरैलिटी में अंतर समझने का प्रयास करते है।
Difference between Ethics and Morality
एथिक्स और मोरैलिटी में अंतर-एथिक्स व्यवसायिक या बाह्य संस्था द्वारा निर्धारित होता है। इसमें जो नियम बनते है वह बहारी दुनिया या संगठन बनाता है। मोरालिटी या नैतिकता हमारे आतंरिक मन, और अंतरात्मा (Conscience) द्वारा निर्धारित होता है। हम किसी कंपनी या संस्था में जब काम करते है तो उसके कोड ऑफ कंडक्ट के अनुसार ही करते हैं, तो हमारा ये बेहेवियर और काम एथिकल (नैतिक)कहा जाता है।
वहीं अगर किसी कंपनी के कोड ऑफ कंडक्ट में लिखा है कि ग्राहक के साथ हमेशा अच्छे से पेश आए लेकिन हम बेहूदगी से पेश आते हैं तो हमारा ये काम अनएथिकल (अनैतिक) हुआ। यह दोनों अपूर्ण पर्यावाची है। कभी-कभी ऐसा समय आता है जब हम Ethically Correct होते हुये Morally Wrong होना पड़ता है। और कभी ऐसा भी समय आता है जब हम Morally Correct होते हैं और न चाहते हुए भी Ethically Wrong हो जाते है।
How do we know that we are ethically right but morally wrong?
हम कैसे पहचाने कि हमे एथिकल सही है लेकिन मोरली गलत।
उसके लिए हम एक उदाहरण लेते है।
दो बहुत अच्छे दोस्त है एक दोस्त पुलिस ऑफिसर है और दूसरा समाज के लिए लड़ता है या कह सकते है की वो समाज के लिए कुछ करना चाहता है मगर उसका तरीका गलत है लेकिन इरादा नेक है। एक दिन उस पुलिस ऑफिसर दोस्त को मिशन दिया जाता है की उसे उस आदमी को अरेस्ट करना है। किन्तु जब दोनों दोस्तों का बहुत समय बाद आमना-सामना होता है तो वे दोनों बहुत खुश होते है। किन्तु समय उनको यह याद दिलाता है की दोनों के मकसद बिलकुल अलग है।
पुलिस दोस्त अपने दोस्त को समझाता है की वो सरेंडर कर ले किन्तु वह अपने मकसद से पीछे हटने को तैयार नहीं होता है। कुछ समय बाद वह एक दुश्मन की तरह आमने -सामने होते है और दोनों साइड से गोलियाँ चलनी शुरू होती है और पुलिस वाले दोस्त की गोली अपने दोस्त पर चलती है और उसकी मृत्यु हो जाती है।
इस छोटी सी कहानी से हमने यह सीखा कि जो दोस्त पुलिस था उसने अपने पुलिस होने का फर्ज अच्छे से निभाया किन्तु दोस्ती का फर्ज नहीं निभा सका। इसीलिए कहते है की हमें कभी- कभी एथिकल सही होते हुए भी मोरली गलत होना पड़ता ही है।